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मेरी भाषा माञ भाखि रहतो निहिं

मेरी भाषा                     माञ भाखि

रहतो निहिं फुटानि रहतो निहिं सेखि रे
छाड़ि देले अ तञ आपन माञ भाखि रे

जनम लेले करले रे तञ अहाञ-अहाञ
चुप करालो माञे दुधा देइ कांखे कराञ
        परेक माञ के माञ कहले रहबे सेप ढकि रे....
   छाड़ि देले अ तञ आपन माञ भाखि रे।।

माञ-बाप चिनहले ,चिनहले काका-खुड़ा 
गिरे  रहें टेंग तरे ना छाडिंस  निजेक डिंढ़ा
परेक चाइले चलले जाबे गाढ़ाइ ढुकि रे....
छाड़ि देले अ तञ निजेक माञ भाखी रे।।

निजेक आहो डिनि माञ निजेक रे करम
एहे गुलाइ  धरि रहे एहे  टाइ रे तर धरम
   परेक गठे गठाले पाउबे जांका जांकि रे.....
  छाड़ि  देले अ तञ आपन माञ भाखि रे।।

हरलालेक  नेहरन  कान  खलि  दिहिं  मन
दामि रतन खसि गेले घुरि पाउबे निंहिं धन
परेक हुचुके हुचकले पाउबे खालि फांकि रे
छाड़ि  देले अ तञ आपन माञ भाखि रे।।

                       -----हरलाल केटिआर

©Harlal Mahato #MeriBhasha #kudmali

कुड़मालि भाषा की कविता का हिंदी अनुवादा----

माञ भाखि अर्थात मातृ भाषा 

मां की गोद में सर्वप्रथम जो भाषा हम सीखते हैं,मातृभाषा कहलाती है।
मेरी भाषा                     माञ भाखि

रहतो निहिं फुटानि रहतो निहिं सेखि रे
छाड़ि देले अ तञ आपन माञ भाखि रे

जनम लेले करले रे तञ अहाञ-अहाञ
चुप करालो माञे दुधा देइ कांखे कराञ
        परेक माञ के माञ कहले रहबे सेप ढकि रे....
   छाड़ि देले अ तञ आपन माञ भाखि रे।।

माञ-बाप चिनहले ,चिनहले काका-खुड़ा 
गिरे  रहें टेंग तरे ना छाडिंस  निजेक डिंढ़ा
परेक चाइले चलले जाबे गाढ़ाइ ढुकि रे....
छाड़ि देले अ तञ निजेक माञ भाखी रे।।

निजेक आहो डिनि माञ निजेक रे करम
एहे गुलाइ  धरि रहे एहे  टाइ रे तर धरम
   परेक गठे गठाले पाउबे जांका जांकि रे.....
  छाड़ि  देले अ तञ आपन माञ भाखि रे।।

हरलालेक  नेहरन  कान  खलि  दिहिं  मन
दामि रतन खसि गेले घुरि पाउबे निंहिं धन
परेक हुचुके हुचकले पाउबे खालि फांकि रे
छाड़ि  देले अ तञ आपन माञ भाखि रे।।

                       -----हरलाल केटिआर

©Harlal Mahato #MeriBhasha #kudmali

कुड़मालि भाषा की कविता का हिंदी अनुवादा----

माञ भाखि अर्थात मातृ भाषा 

मां की गोद में सर्वप्रथम जो भाषा हम सीखते हैं,मातृभाषा कहलाती है।