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#तीन_कुण्डलिया_छंद ठाने जो बैठे सरस,मानेंगे नहिं

#तीन_कुण्डलिया_छंद

ठाने जो बैठे सरस,मानेंगे नहिं बात।
कर सकते वो कुछ नहीं,भले रमें दिन-रात।।
भले रमें दिन-रात,सीख कैसे पायेंगे।
जानत वो हर बात,यही केवल गायेंगे।।
कह सतीश कविराय,स्वयं को क्या पहचाने।
मानेंगे नहिं बात,सरस जो बैठे ठाने।। 
(2)
अपनी ग़ल्ती मानने,नहीं हैं जो तैयार।
उनसे हारा ईश्वर,शत प्रतिशत है यार।।
शत प्रतिशत है यार,सही यह बात हमारी।
सच होवे जो बात,लगे दुनिया को गारी।।
कह सतीश कविराय,मंच पर खाँय पटकनी।
नहीं हैं जो तैयार,मानने ग़ल्ती अपनी।।
(3)
मक़सद मेरा यह नहीं,लड़ूँ किसी से रोज़।
कविता से है जग सके,क़ोशिश अपना ओज।।
क़ोशिश अपना ओज,सँवर जाये जीवन में।
फले हृदय की आश,उगें नव-पंख लगन में।।
कह सतीश कविराय,दिखे अब नया सबेरा।
लड़ूँ किसी से रोज़,नहीं यह मक़सद मेरा।

©सतीश तिवारी 'सरस' #यूँ_ही_कुछ_भाव
#तीन_कुण्डलिया_छंद

ठाने जो बैठे सरस,मानेंगे नहिं बात।
कर सकते वो कुछ नहीं,भले रमें दिन-रात।।
भले रमें दिन-रात,सीख कैसे पायेंगे।
जानत वो हर बात,यही केवल गायेंगे।।
कह सतीश कविराय,स्वयं को क्या पहचाने।
मानेंगे नहिं बात,सरस जो बैठे ठाने।। 
(2)
अपनी ग़ल्ती मानने,नहीं हैं जो तैयार।
उनसे हारा ईश्वर,शत प्रतिशत है यार।।
शत प्रतिशत है यार,सही यह बात हमारी।
सच होवे जो बात,लगे दुनिया को गारी।।
कह सतीश कविराय,मंच पर खाँय पटकनी।
नहीं हैं जो तैयार,मानने ग़ल्ती अपनी।।
(3)
मक़सद मेरा यह नहीं,लड़ूँ किसी से रोज़।
कविता से है जग सके,क़ोशिश अपना ओज।।
क़ोशिश अपना ओज,सँवर जाये जीवन में।
फले हृदय की आश,उगें नव-पंख लगन में।।
कह सतीश कविराय,दिखे अब नया सबेरा।
लड़ूँ किसी से रोज़,नहीं यह मक़सद मेरा।

©सतीश तिवारी 'सरस' #यूँ_ही_कुछ_भाव