(अभी तक आपने सुना कि "दरिया शोर करता है, समंदर कुछ नहीं कहता".... लेकिन अब एक नई इमेजरी के साथ पेश है एक ताजा गज़ल, जिसमें चुप्पी अभिधा लक्षणा व्यंजना तीनों वैरायटी में है। मुझे उम्मीद है कि रचना पसंद आयेगी) ग़ज़ल नदी बस गुनगुनाती है समंदर चुप नहीं रहता दिया चुपचाप जलता है बवंडर चुप नहीं रहता समय आने पे ही कुछ बोलता है वक़्त का मुंसिफ ये कम तो बोलता है दोस्तो पर चुप नहीं रहता गुलाबों की महक में भी ज़हर घोला सियासत ने वो मस्जिद चुप नहीं रहती ये मंदिर चुप नहीं रहता मेरी ख़ामोशियों का भी असर होता नहीं उस पर सितम करते ही जाता है सितमगर चुप नहीं रहता वो बाहर इस तरह रहता है जैसे कुछ नहीं आता मगर जब घर में होता है तो अंदर चुप नहीं रहता @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद"