एक एक परिंदा उड़ गया सुनी रह गई डाल,, तन्हाइयों में कट गए दिन महीने और साल,, खामोशी सी रहती है लबों में मायूसी झाँकती मन के भीतर से,,, एक तलाश है रूह को जो झकझोरती है हर लम्हा,,, वो प्यास अब इन आंखों में है अजीब सी कसक है जो सुकून मिलता है,,, किनारे बैठे उस तन को,,, जो भिगता है नदीया के कलकल में,, खामोश सी बहती हवा में,,, कभी-कभी जाने पहचाने चेहरे मिल जाते हैं अनजानी राहों में अजनबी से बनके, आंखों से बयां कर जाते हैं अपने होने को,,,,