आदत तेरे दीदार की आँखों को आदत हुई जबसे नाज़रा कोई भी हो देखना अच्छा नहीं लगता ।। कि वो सपना जिस सपने में तुम नहीं होते सपना कोई भी हो मुझको अच्छा नहीं लगता ।। दिल को तेरी याद की आदत हुई जबसे तेरी याद के बिन धडकना अच्छा नहीं लगता ।। आरजू है तू मेरी कर दे मुझे मुकम्मल तेरे बिन मुझे ज़माना अच्छा नहीं लगता ।। मेरी रूह को तेरे एहसास की आदत हुई जबसे तेरे बिन कोई भी मौसम सुहाना नहीं लगता ।। तू मिले तो बयाँ करूँ मैं अपने सारे जज़्बात हर बात तस्वीर को सुनना अच्छा नहीं लगता ।। Tere deedar ki ankho ko aadat hui jabse Nazara koi bhi ho dekhna acha nahi lagta Ke wo sapna jis sapne me tum nahi hote Sapna koi bhi ho mujhko acha nahi lagta Dil ko teri yaad ki aadat hui jabse... Teri yaad ke bin dhadakna acha nahi lagta arzoo hai tu meri kr de mujhe mukammal