आज ज़ख़्मी हैं ज़िस्म तो क्या हुआ,, कल आफ़ताब की तरह फ़िर निकलेंगे। टूटेंगी लाठियाँ उनकी लाख मगर,, हौसले हमारे अब कभी न टूटेंगे। जो खाई हैं हमने कसमें वतन की,, अब अहल-ए-सियासत से हम कहा डरेंगे। और अखबारों में उनकी आने लगी है खबर,, आवाम से हकीकत वो अब कैसे छिपाएंगे। है दुआ हर गांव -हर सहर साहिन बाग़ बने साबिर,, यही उम्मीद लिए कदम आगे हम बढ़ाएंगे। -साबिर बख़्शी ज़ख़्मी हैं ज़िस्म -शाहीन बाग़ #nojoto #shaheenbagh #jmi #protest Adil Zafar 'BuKhsh'🖋️