जय श्री राम पहले अध्याय में आपने पढ़ा कि महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम और लक्ष्मण जी को अपने साथ अयोध्या से ले गए और रास्ते में ताड़का आई जिसको महर्षि विश्वामित्र के कहने पर श्री राम जी ने वध कर दिया अब आगे... रामायण की कहानी अध्याय दूसरा महर्षि विश्वामित्र जी को मिथिला नरेश राजा जनक के दरबार में उनकी पुत्री सीता के स्वयंवर का निमंत्रण मिला था जिसमें महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम और लक्ष्मण जी को चलने की आज्ञा दी इधर महाराज जनक जी ने एक स्वयंवर रचा था कि जो इस शिवजी की धनुष का प्रत्यक्षा चढ़ा देगा उसी के साथ मेरी पुत्री सीता का विवाह होगा सभा जुटी और वहां पर महर्षि विश्वामित्र के साथ श्री राम और लक्ष्मण जी सहित सभी योद्धा झूटे थे और सभी ने एक-एक कर उस शिव जी के धनुष की प्रत्यक्षा चढ़ाने का प्रयास किया लेकिन शिवजी का धनुष किसी ने उठा भी ना पाया यह सब देख कर राजा जनक जी बहुत निराश और हताश हो गए और उन्होंने क्रोध में आकर सभी योद्धाओं को चुनौती दे दी की क्या कोई इस संसार में ऐसा वीर नहीं जो इस धनुष की प्रत्यक्षा चढा सके यह सब सुनकर लक्ष्मण जी को क्रोध आ गया और उन्होंने राजा जनक जी से कहा यह आपकी गलतफहमी है यह संसार वीरों से खाली नहीं है तभी महर्षि विश्वामित्र जी ने भगवान श्री राम जी को आज्ञा दी की वह इस धनुष की प्रत्यक्षा चढ़ाएं और इस स्वयंवर में भाग लेकर सीता जी से विवाह करें महर्षि विश्वामित्र जी की आज्ञा पाते ही श्री राम जी उठ खड़े हुए और धनुष की ओर आगे बढ़कर पहले उस धनुष को प्रणाम किया और फिर बड़े सहजता से उस धनुष को उठाकर प्रत्यक्षा चढ़ा कर तोड़ दिये उसके टूटते ही पूरी पृथ्वी डोल गई और फिर भगवान परशुराम जी को पता चल गया कि उनके आराध्य शिवजी का धनुष किसी ने भंग कर दिया है और भगवान परशुराम जी वहां पर पहुंच गए और बहुत ही गुस्से से उन्होंने कहा ऐसा कोन छत्रिय है जिसने मेरे आराध्य शिव जी का धनुष भंग किया है तभी श्री राम जी ने बड़े नर्मता से उनका अभिवादन किया और उनसे कहा कि मैंने ही यह धनुष भंग किया है यह सब सुनकर भगवान परशुराम और भी क्रोधित हो उठे लेकिन बाद में महर्षि विश्वामित्र जी के समझाने पर शांत हो गए और शांति भाव से श्री राम जी को देखने लगे तभी श्री राम जी को देखते ही उनके भीतर नारायण का रूप दिखने लगा और वह समझ गई श्री राम जी के रूप में भगवान नारायण ही इस धरती पर अवतार लिए हैं और फिर वो उन्हें प्रणाम कर वहां से चल दिए और फिर उनके जाने के बाद सीता जी ने श्री राम जी का पति रूप में वरण किया और गले में माला पहना कर उन्हें अपना पति परमेश्वर स्वीकार किया इस तरह से यह विवाह संपन्न हो गई और फिर राम लक्ष्मण और सीता जी राजा जनक जी से आज्ञा लेकर अपने अयोध्या लौट चलें...! ©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम