इठलाती सी बलखाती सी हरदम हंसी ठिठोली करती रहती थी मेरी जिंदगी। कभी अपनों को मनाती थी कभी अपनों से रूठ जाया करती थी मेरी जिंदगी। तुझे बनाने में न जाने हमने कितनी रातें बर्बाद कर दी फिर भी हमारी न बनी। तुम मेरे मन मुताबिक ना सही पर कम से कम अपनी मर्जी की तो बन गई। ना कोई शिकवा किया ना शिकायत की फिर क्यों रुठने सी लगी है जिंदगी। कोई खता हुई है तो सजा दे मुझे रूठ मत मुझसे तू प्यारी है मुझे जिंदगी। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-52 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।