लापरवाह है हम, बस स्वार्थ के वशीभूत है इंसान है, पर इंसानियत से हम सब दूर है धरती माँ को तुच्छ समझ करते अपमान है क्यूँ कि जननी का भी तिरस्कार करते हम आधुनिकता के दौर में दायित्व भूल बैठे हम माँ धरती, इज्ज़त की उसका सोदा कर बैठे हाय! स्वार्थ के अंधे,जिस्म से वस्त्र खींचते है उजाड़ने में लगे धरती, सब कफ़न बोलते हैं जिस धरती पर जन्म लिया, पाया प्यार हमनें समझते पाँव की ठोकर,पाए हैं संस्कार हमनें ♥️ Challenge-546 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ विश्व पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌍🌍 ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए।