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मेरी ख़ामोशी आज मुझसे ही सवाल करती है साँसों को छलन

मेरी ख़ामोशी आज मुझसे ही सवाल करती है
साँसों को छलनी, धड़कनों को तार-तार करती है..
चुभता है बहुत कुछ इस दिल में तीर की तरह,..,,
ठहरे हुए दरिया में मानो पत्थर से वार करती है..!

कभी हर्फ़ भी कम पर जाते है इसे बयां करने में,,
तो कभी अल्फ़ाज़ों की कागज़ों पे बौछार करती है..
कभी हँसते हँसते पलकें भींगो जाती है मेरी..,,
तो कभी बेइंतिहासा दिल में चाहत भरती है..

 "मेरी ख़ामोशी भी मुझसे वक़्त-बे-वक़्त सवाल करती है"..।।

©rishika khushi #Sea  
#मेरीख़ामोशी
मेरी ख़ामोशी आज मुझसे ही सवाल करती है
साँसों को छलनी, धड़कनों को तार-तार करती है..
चुभता है बहुत कुछ इस दिल में तीर की तरह,..,,
ठहरे हुए दरिया में मानो पत्थर से वार करती है..!

कभी हर्फ़ भी कम पर जाते है इसे बयां करने में,,
तो कभी अल्फ़ाज़ों की कागज़ों पे बौछार करती है..
कभी हँसते हँसते पलकें भींगो जाती है मेरी..,,
तो कभी बेइंतिहासा दिल में चाहत भरती है..

 "मेरी ख़ामोशी भी मुझसे वक़्त-बे-वक़्त सवाल करती है"..।।

©rishika khushi #Sea  
#मेरीख़ामोशी