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चाँद और तारों के बीच रात को चमकने वाले गायब से हुए

चाँद और तारों के बीच
रात को चमकने
वाले गायब
से हुए..
                        " ओ जुगनू "

कभी दिन में भी
निकला करो,. प्रिय प्रांशु ( Prashant Dixit ),

 चाँद और तारों के होते हुए रात को चमकते तो कभी टिमटिमाते ये जुगनू इनका ना अपना एक अलग ही अस्तित्व है,. तुम नहीं रोक पाओगे खुद को इन्हें जी भर महसूस कर लेने से,. अब सच ही तो ईश्वर ने दुनिया बनाई है तो हर उस वस्तु को प्रदान की है विशेष शक्ति,. और देखो ना इस तरह नहीं मिलती किसी की शख्सियत  किसी और की शख्सियत से,.

 महज़ चुनिंदा लोग हैं यहाँ,.. जो दूसरों की ज़िंदगी को खुशियों से भर देते हैं या फिर खुशियां बांटते हैं,.. उन लोगों से कोसों दूर जिन्हें दुनिया से कोई लेना - देना ही नहीं होता,. इस दुनिया में रहते तुम जैसे फरिश्ते भी मेरे भाई,. जिन्हें फर्क पड़ता है न होने से,.. खुद के हालात कैसे भी हों चाहे पर नहीं छोड़ते कोई कसर दूसरों को हँसाने में.,

       बच्चे सा मन है तुम्हारा प्रांशु,. और बिल्कुल बच्चे बन जाते हो तुम,... बहुत याद आते हैं वो दिन,. वो दिन भी क्या दिन रहे मार्च - अप्रेल के हम लोग खूब सारी मस्ती करते थे,.. और कोई ही ऐसा प्राणी छूटे तुमसे जिसके जन्मदिन पर तुमने रात के 12 बजे अपने लम्बे खूब लम्बे टेस्टी से नवाजा हो,.. अरे तुम रो महीने पहले तयारी में जुट जाते थे, ठीक वैसे जैसे शादी वाले घर का माहौल होता है, कोशिश करूंगी तुम्हारे ही अंदाज़ में.,.
चाँद और तारों के बीच
रात को चमकने
वाले गायब
से हुए..
                        " ओ जुगनू "

कभी दिन में भी
निकला करो,. प्रिय प्रांशु ( Prashant Dixit ),

 चाँद और तारों के होते हुए रात को चमकते तो कभी टिमटिमाते ये जुगनू इनका ना अपना एक अलग ही अस्तित्व है,. तुम नहीं रोक पाओगे खुद को इन्हें जी भर महसूस कर लेने से,. अब सच ही तो ईश्वर ने दुनिया बनाई है तो हर उस वस्तु को प्रदान की है विशेष शक्ति,. और देखो ना इस तरह नहीं मिलती किसी की शख्सियत  किसी और की शख्सियत से,.

 महज़ चुनिंदा लोग हैं यहाँ,.. जो दूसरों की ज़िंदगी को खुशियों से भर देते हैं या फिर खुशियां बांटते हैं,.. उन लोगों से कोसों दूर जिन्हें दुनिया से कोई लेना - देना ही नहीं होता,. इस दुनिया में रहते तुम जैसे फरिश्ते भी मेरे भाई,. जिन्हें फर्क पड़ता है न होने से,.. खुद के हालात कैसे भी हों चाहे पर नहीं छोड़ते कोई कसर दूसरों को हँसाने में.,

       बच्चे सा मन है तुम्हारा प्रांशु,. और बिल्कुल बच्चे बन जाते हो तुम,... बहुत याद आते हैं वो दिन,. वो दिन भी क्या दिन रहे मार्च - अप्रेल के हम लोग खूब सारी मस्ती करते थे,.. और कोई ही ऐसा प्राणी छूटे तुमसे जिसके जन्मदिन पर तुमने रात के 12 बजे अपने लम्बे खूब लम्बे टेस्टी से नवाजा हो,.. अरे तुम रो महीने पहले तयारी में जुट जाते थे, ठीक वैसे जैसे शादी वाले घर का माहौल होता है, कोशिश करूंगी तुम्हारे ही अंदाज़ में.,.
alpanabhardwaj6740

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