वो दिन याद करता हूँ आज भी,
जब हम खुलके बाते करते थे,
खुलके हस्ते थे ,
में तुम्हारी तारीफे करता था वो भी बिना थके ,
आज भी करता हूँ मगर सुनने वाला खो गया है ,
आज भी याद करता हूँ वो रात भर जगना और वही रोजके सवाल बार बार एक दूसरे को पूछना ,
हा क्या मालूम हमे किसी की नजर लगी,
अब कविताओं में भी मन नही लगता,