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हे मेरी प्रिय कविता ! नहीं बसाना है मुझे अलग से को

हे मेरी प्रिय कविता !
नहीं बसाना है मुझे अलग से कोई द्वीप,
तू चलती रह, आम से आम आदमी की उँगली पकड़
मेरी प्रिय कविते,
जहाँ से मैंने यात्रा शुरू की थी
फिर से वहीं आकर रुकना मुझे नहीं पसंद,
मैं लाँघना चाहता हूँ
अपना पुराना क्षितिज ।
© नामदेव ढसाल मराठी के विद्रोही कवि नामदेव ढसाल को परिनिर्वाण दिवस पर सादर नमन !!
हे मेरी प्रिय कविता !
नहीं बसाना है मुझे अलग से कोई द्वीप,
तू चलती रह, आम से आम आदमी की उँगली पकड़
मेरी प्रिय कविते,
जहाँ से मैंने यात्रा शुरू की थी
फिर से वहीं आकर रुकना मुझे नहीं पसंद,
मैं लाँघना चाहता हूँ
अपना पुराना क्षितिज ।
© नामदेव ढसाल मराठी के विद्रोही कवि नामदेव ढसाल को परिनिर्वाण दिवस पर सादर नमन !!
blparas9640

B.L. Paras

New Creator

मराठी के विद्रोही कवि नामदेव ढसाल को परिनिर्वाण दिवस पर सादर नमन !! #कविता