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अश्र बहते हैं तो बह जाने दे, ये कल को सुरक्षित कर

अश्र बहते हैं तो बह जाने दे,
ये कल को सुरक्षित कर रहे हैं।
आज जख्म जो दिख रहे हैं,
वो जिस्म को पुख्ता कर रहे हैं।
राह में जो काटें बिछा रहे हैं बिछा लेने दो,
वो मंजिल के रास्ते सुगम कर रहे हैं।
हमको अब घबराना कैसा,
जब हम कल साथ थे और आज भी साथ रह रहे हैं।। घबराना कैसा.........!
अश्र बहते हैं तो बह जाने दे,
ये कल को सुरक्षित कर रहे हैं।
आज जख्म जो दिख रहे हैं,
वो जिस्म को पुख्ता कर रहे हैं।
राह में जो काटें बिछा रहे हैं बिछा लेने दो,
वो मंजिल के रास्ते सुगम कर रहे हैं।
हमको अब घबराना कैसा,
जब हम कल साथ थे और आज भी साथ रह रहे हैं।। घबराना कैसा.........!