वो स्वर्ण वर्णी तन की आभा मेरे मन को भा गई कर अंधेरा दूर वो पहली किरण सी आ गई। जब नजर तुझसे मिली तो कृष्ण आंखों में दिखे मेरे ह्रदय अकास पे तू बनके बदली छा गई। आग़ सी जलती जमीं पे फ़िर से नव अंकुर उगा दे तेरी बदली जो यहां दो बूंद भी बरसा गई । : #Dsuyal #preeti dadhich.... मैं प्यार करता हूँ इसलिए नहीं कि तुम भी मुझे उतना ही प्यार करो। तुम तो स्वयं प्रेम प्रतिमान हो स्त्री हो ममता हो करुणा हो दया हो क्षमता हो सृष्टा हो शब्दों में तुम्हें गढ़ना मेरे वस में नहीं ।तेरी बजह से सबका वजूद है।तुम नहीं तो कुछ नहीं ।collab करें जो मन में आये कमेंट करें आपकी हर एक प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल रत्न है।