जो उठाते हैं मेरे देश पर नज़र, उन नज़रों को झुकाना है। अभी तो बस झुकाया है, उसे और गिराना है। कसम है मात्रभूमि की, एक एक को मिट्टी में मिलाना है। मिले गर मुझसे कभी वो, उसे धूल चटाना है। वो सोचता है कर देगा टुकड़े हमें आपस में लड़ा कर, उसकी इसी सोच को हराना है। आओ यारों फिर एक हो जाए हम, मात्रभूमि नें हमें ललकारा है। ऋण चुकाना है इस धरती का, हमें अपना लहू बहाना है। जो बढ़े दुश्मन का एक कदम, उसे वहीं दफ़नाना है। सुकून खो गया है मेरे देश का कहीं, अमन चैन इस देश का फिर कायम कराना है। क़ैद में है ये सोने की चिड़िया सियासतदानों के, इसे फिर पिंजरे से आज़ाद कराना है।। - राहुल कांत ©Raahul Kant जो उठाते हैं मेरे देश पर नज़र, उन नज़रों को झुकाना है। अभी तो बस झुकाया है, उसे और गिराना है। कसम है मात्रभूमि की, एक एक को मिट्टी में मिलाना है। मिले गर मुझसे कभी वो, उसे धूल चटाना है।