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सपनों की उड़ान मैं सच कह रही हूँ, काका मेरा रवि के

सपनों की उड़ान
मैं सच कह रही हूँ, काका मेरा रवि के साथ कोई संबंध नहीं है, बस इतना ही कि वह मेरे कॉलेज में पढ़ता है। फिर मंगल ने तुम दोनों को कैसे देखा एक साथ– सरपंच ने कड़क आवाज़ में पूछा। रात हो गई थी काका, कॉलेज बस आज देर से आयी थी। अँधेरे में मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था तो रवि मेरे साथ हो लिया, आशा ने अपने बाबूजी की ओर देखते हुए कहा। आशा के बाबूजी नजरें नीचे किये
बैठे थे, वे जानते थे कि आशा का कोई दोष नहीं। वह तो भविष्य में आसमां की सैर के सपने देख रही थी। लेकिन पुरे गाँव वालों की उपस्थिति में उन्होंने बस इतना ही कहा –आशा निर्दोष है, मैं जानता हूँ, वह मेरी बेटी है। तभी पीछे से किसी की आवाज़ आयी अगर आशा गलत है तो रवि भी तो गलत है, उसे क्यों नहीं बुलाया गया ? सरपंच दहाड़ते हुए बोला –रवि की कोई गलती नहीं , वह लड़का है, मर्यादा में लड़कियों  को रहना चाहिए। आशा ने मर्यादा  का उल्लंघन किया है, इसे पंचायत की सजा माननी ही होगी।
 मैंने किसी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया, बस अँधेरा हो जाने की वजह से मैं रवि के साथ आ रही थी। आज रिजल्ट था मेरा, पूरे जिले में सबसे ज्यादा मार्क्स आये हैं मेरे, मुझे अपने सपनों को जीना है, इस बेसिर पैर की बातों के कारण मैं कोई सजा नहीं भुगत सकती। और हाँ काका –अगर आपने लक्ष्मी की तरह जोरजबरदस्ती कर मुझे भी सल्फास खाने पर मजबूर किया तो आप भी नहीं बचेंगे क्योंकि यहाँ आने से पहले मैंने एस. पी. साहब को फोन कर दिया है जिन्होंने सबसे ज्यादा मार्क्स लाने पर कल मुझे बधाई दी थी। जमाना बदल चुका है काका ।
 इन छोटी बातों को लेकर अब आप किसी को भी मरने पर मजबूर नहीं कर सकते। अब हमारे पंखों को भी उड़ान मिल चुका है। अब न्याय मिलना किसी की बपौती नहीं, न ही कोई यह कह सकता है कि #तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है #,इसलिये अपनी पद प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए केवल गाँव की भलाई सोचिए– कहते हुए आशा ने अपना बैग उठाया और आत्मविश्वास के साथ उड़ान भरने की दिशा में कदम बढ़ा दिया।
वीणा कुमारी

©Saroj Patwa
  #प्रेरककहानियां