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जाने हम इश्क़ पीते हैं या इश्क़ हमें पीता है... शेष

जाने हम इश्क़ पीते हैं या इश्क़ हमें पीता है...

शेष अनुशीर्षक में...

 ऐसे ही रात के 12 बजने के बाद जब नया कैलेंडर दिन शुरू हुआ तो ये ख्याल आया कि ये नए दिन को पुराने दिन ने अपने में समेट लिया या खुद जाकर घुल गया उस में...मैं भी घुलता रहता हूं तुम में ऐसे ही...सिमट जाता हूं तुम्हारे एहसासों की चादर में...और तुम्हें पता है की ये चादर कितनी जादुई है! जितने पैर पसारो उतनी बड़ी हो जाती है...वैसे ये जादू तुम्हारा है...खैर तुम छोड़ो ये सब बेकार की बातें हैं...इश्क़ की बातें हैं ना तुम्हारे लिए बेकार ही होंगी...

ऐसे ही मुझे जब भी कोई ख्याल आता है जाने क्यों मैं मीरा की तरह हर उस ख्याल को तुमसे जोड़ने लगता हूं जैसे वो हर दृश्य में कृष्ण देखती थीं...पागल बुलाते थे सभी उन्हें...मुझे नहीं बुला सकता कोई भी क्योंकि ये मेरा तुमसे जुड़ाव किसी को बताता थोड़ी हूं...चुपचाप रोज़ हर पल शनै शनै तुम में बहता रहता हूं...इश्क़ में जीता रहता हूं और इश्क़ पीता रहता हूं...

जाने हम इश्क़ पीते हैं या इश्क़ हमें पीता है...जाने इश्क़ ने इश्क़ करने वालों को ज़िंदा रखा है या इश्क़बाज़ों ने इश्क़ ज़िंदा रखा है...सदियों से.....

- दीपक कनौजिया
जाने हम इश्क़ पीते हैं या इश्क़ हमें पीता है...

शेष अनुशीर्षक में...

 ऐसे ही रात के 12 बजने के बाद जब नया कैलेंडर दिन शुरू हुआ तो ये ख्याल आया कि ये नए दिन को पुराने दिन ने अपने में समेट लिया या खुद जाकर घुल गया उस में...मैं भी घुलता रहता हूं तुम में ऐसे ही...सिमट जाता हूं तुम्हारे एहसासों की चादर में...और तुम्हें पता है की ये चादर कितनी जादुई है! जितने पैर पसारो उतनी बड़ी हो जाती है...वैसे ये जादू तुम्हारा है...खैर तुम छोड़ो ये सब बेकार की बातें हैं...इश्क़ की बातें हैं ना तुम्हारे लिए बेकार ही होंगी...

ऐसे ही मुझे जब भी कोई ख्याल आता है जाने क्यों मैं मीरा की तरह हर उस ख्याल को तुमसे जोड़ने लगता हूं जैसे वो हर दृश्य में कृष्ण देखती थीं...पागल बुलाते थे सभी उन्हें...मुझे नहीं बुला सकता कोई भी क्योंकि ये मेरा तुमसे जुड़ाव किसी को बताता थोड़ी हूं...चुपचाप रोज़ हर पल शनै शनै तुम में बहता रहता हूं...इश्क़ में जीता रहता हूं और इश्क़ पीता रहता हूं...

जाने हम इश्क़ पीते हैं या इश्क़ हमें पीता है...जाने इश्क़ ने इश्क़ करने वालों को ज़िंदा रखा है या इश्क़बाज़ों ने इश्क़ ज़िंदा रखा है...सदियों से.....

- दीपक कनौजिया

ऐसे ही रात के 12 बजने के बाद जब नया कैलेंडर दिन शुरू हुआ तो ये ख्याल आया कि ये नए दिन को पुराने दिन ने अपने में समेट लिया या खुद जाकर घुल गया उस में...मैं भी घुलता रहता हूं तुम में ऐसे ही...सिमट जाता हूं तुम्हारे एहसासों की चादर में...और तुम्हें पता है की ये चादर कितनी जादुई है! जितने पैर पसारो उतनी बड़ी हो जाती है...वैसे ये जादू तुम्हारा है...खैर तुम छोड़ो ये सब बेकार की बातें हैं...इश्क़ की बातें हैं ना तुम्हारे लिए बेकार ही होंगी... ऐसे ही मुझे जब भी कोई ख्याल आता है जाने क्यों मैं मीरा की तरह हर उस ख्याल को तुमसे जोड़ने लगता हूं जैसे वो हर दृश्य में कृष्ण देखती थीं...पागल बुलाते थे सभी उन्हें...मुझे नहीं बुला सकता कोई भी क्योंकि ये मेरा तुमसे जुड़ाव किसी को बताता थोड़ी हूं...चुपचाप रोज़ हर पल शनै शनै तुम में बहता रहता हूं...इश्क़ में जीता रहता हूं और इश्क़ पीता रहता हूं... जाने हम इश्क़ पीते हैं या इश्क़ हमें पीता है...जाने इश्क़ ने इश्क़ करने वालों को ज़िंदा रखा है या इश्क़बाज़ों ने इश्क़ ज़िंदा रखा है...सदियों से..... - दीपक कनौजिया #meera #meerakrishna #modishtro #deepakkanoujia #sleflesslove #drinkinglove #nightday