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कुदरत का ऐसा कहर ढाया,मिट गये गाँव के गाँव, कई का

कुदरत का ऐसा कहर ढाया,मिट गये गाँव के गाँव, कई का तो वजूद खत्म हो गया,
छीन गए काम धंधे उठ गया अपनों का साया,आँखों के सामने ही अपना खो गया,

बिलख रही थी वो आत्मा मिलने को अपनों से,बन गई फिर ऐसी सामाजिक दूरी,
न मिल सकते अपनो से फिर आपसी मेलजोल न बढ़ा सकते ऐसी हो गई मजबूरी,

अंतश्चेतना में आत्मसमरण हो गया अपनो का डर फिर से न करना प्रकृति शोषण,
निज मोह पर रखना नियंत्रण करना हमेशा प्रकृति प्रेमियों का अन्तः अन्वेषण।।
 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-125 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
कुदरत का ऐसा कहर ढाया,मिट गये गाँव के गाँव, कई का तो वजूद खत्म हो गया,
छीन गए काम धंधे उठ गया अपनों का साया,आँखों के सामने ही अपना खो गया,

बिलख रही थी वो आत्मा मिलने को अपनों से,बन गई फिर ऐसी सामाजिक दूरी,
न मिल सकते अपनो से फिर आपसी मेलजोल न बढ़ा सकते ऐसी हो गई मजबूरी,

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