नकाब चेहरे पर डाल चुकी हूँ, क्योंकी आदतें लोगों की बदलती नहीं। रिवाजों के कई मेले लगे हैं मगर, यहाँ दिलों की मर्जी चलती नहीं। न अपने रूकते हैं न बेगाने, और तो और जिंदगी भी रूकती नहीं। दूर चले आये हैं बहुत अब, आगाज़ हुआ पर मंजिल दिखती नहीं। हँस कर हर बात टाल देती हूँ मैं, कुछ बातें मगर टलती नहीं। एक अरसे से मुलझायी हैं पलकें, दर्द होता भी है तो बरसती नहीं। कुछ बातें हर वक्त लबों पर रहती है, तो कुछ जबां पर ठहरती नहीं। वो लम्हें जो गुजर कर याद बन गये, वो यादें ज़हन से उतरती नहीं। गुजरता हुआ हर लम्हा ये कह रहा है, क्यों जिंदगी दोबारा मिलती नहीं। यूँ तो बहुत कुछ है जीने के लिए, मगर ख्वाहिशें क्यूँ थमती नहीं। ©Deepu #nakaab