छोटी सी गुड़िया बड़ी हो गयी, नन्हे पैरो पे अपने खड़ी हो गयी मां की तकलीफों को समझने लगी, थोड़े घर के काम अब वो करने लगी, किताबो को समझ के पढ़ने लगी, घर में सबका खयाल रखने लगी, हाथ पीले हो जाएंगे ये बाते होने लगी, ये सोच कर अब वो रोने लगी, गुजारे इतने साल कैसे जाऊंगी मां, रो रो के वो ये कहने लगी, आ गयी पिया के घर, नए रिवाजों में बंधने लगी, कुछ ताने कुछ डांटे सुनती थी मै, पर अब सब कुछ संभालने लगी, मुझे भी आज बड़ी खुशी मिली, वो मां मां जो कहने लगी, छोटी सी गुड़िया बड़ी हो गयी, नन्हे पैरो पे खड़ी हो गयी, औरत एक रूप उसके कई स्वरूप