जज़्बातों को यूँ दफ़ना कर आई हूँ.. अपनी चिता ख़ुद जला के आई हूँ.. बरसों इंतज़ार किए जिन लम्हों का.. उन लम्हों को आज नीलाम कर आई हूँ.. यूँ ना कोई फिर दुनिया में किसी को चाहे.. मैं सज़ा ए चाहत मुकर्रर कर आई हूँ.. पूछो समंदर से खारे पानी का राज़...'रूह' मैं पलकों से दरिया बहा के आई हूँ.. ©Rooh ##rooh##rooh##jazbaaton ko yu dafna kar aayi hoon 🔥