Nojoto: Largest Storytelling Platform

वह मानस की अलबेली सी लिपटी थी स्नेह लता सी भयभीत क

वह मानस की अलबेली सी
लिपटी थी स्नेह लता सी
भयभीत कांप तन जाता
अंधेरी थी बड़ी रूआंसी सी
वह जाल रूप सी बुनती थी
मैं मछली बन फंस जाता था
मधुरस कालियों का पी कर
अब हाय अभागा रोता था
मेरा सुख बना जहर सा
निंदिया उड़ गई हमारी थी
चुपचाप तुम्हें पुकारा था
तो क्या कुछ गया तुम्हारा था।

©Madhu Kashyap
  #Pattiyan