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इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया वर्ना क

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया 

वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया 

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब 

उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया 

रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें 

जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया 

तुझ से मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था 

तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया 

एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर' 

हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया

©Mohd Arsh malik poet sudarshan faqir

#Dark
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया 

वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया 

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब 

उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया 

रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें 

जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया 

तुझ से मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था 

तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया 

एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर' 

हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया

©Mohd Arsh malik poet sudarshan faqir

#Dark