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मिलन की रात थी ना जुदाई की रात थी पलकों से खाबो की

मिलन की रात थी ना जुदाई की रात थी
पलकों से खाबो की वो विदाई की रात थी
सजती रही बारात आंसुओं की सारी रात
एक टूटे हुए दिल की नुमाइश की रात थी

भोर की किरण सा जो माथे पे सज रहा
वहीं रंग लहू के रंग पर भारी था पड़ रहा
हम नाकामियों के ढेर पे चीता से थे पड़े
और कहने वाले कह रहे हैं बधाई की रात थी ..

©Chitra Gupta
  #नाकामियां#दर्द#सितम