बेवजह तो नहीं था मिलना-बिछड़ना हमारा यूँ बेवजह तो नहीं था, नज़रों का नज़रों से तकराना यूँ बेवजह तो नहीं था। साथ ताउम्र निभाने का वादा जो किया था हमने, उन वादों का टूटना यूँ बेवजह तो नहीं था। शामों को उन गलियों में साथ घूमना, अचानक नज़रों से ओझिल होना यूँ बेवजह तो नहीं था। वक़्त के जिस हिस्से पर मेरा नाम हुआ करता था, वो वक़्त किसी और को देना यूँ बेवजह तो नहीं था। चलो मान लिया कि होगी तुम्हारी भी कुछ बंदिशे, पर ये रंजिशे हमारे दरमियाँ यूँ बेवजह तो नहीं था। #एक_अधूरा_शायर . . . बेवजह तो नहीं था मिलना-बिछड़ना हमारा यूँ बेवजह तो नहीं था, नज़रों का नज़रों से तकराना यूँ बेवजह तो नहीं था।