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ना लिखूं बंद दरवाजों में मैं नाचु गाऊं अल्फाजों मे

ना लिखूं बंद दरवाजों में
मैं नाचु गाऊं अल्फाजों में
मैं चलती फिरती लिखती हूं 
खुद से तभी मैं मिलती  हूं।
अल्फ़ाज़ हंसाते जगाते मुझे
सतरंगी धागों  पिरो  कलम में 
 रोज़ गीत नये में सिलती  हूं 
कभी पन्ने उड़ाती दीवानी  हवा 
मां सरस्वती की प्यारी दुआ
गीत की मीत है रजनी 
हे मां ! सरगम मेरी साथी है।












  World Poetry Day

©Rajni Vijay singla #world kavita Day
ना लिखूं बंद दरवाजों में
मैं नाचु गाऊं अल्फाजों में
मैं चलती फिरती लिखती हूं 
खुद से तभी मैं मिलती  हूं।
अल्फ़ाज़ हंसाते जगाते मुझे
सतरंगी धागों  पिरो  कलम में 
 रोज़ गीत नये में सिलती  हूं 
कभी पन्ने उड़ाती दीवानी  हवा 
मां सरस्वती की प्यारी दुआ
गीत की मीत है रजनी 
हे मां ! सरगम मेरी साथी है।












  World Poetry Day

©Rajni Vijay singla #world kavita Day