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सवालों का मेला है ये अकेला मन उसी मन के भीतर बस्ता

सवालों का मेला है ये अकेला मन
उसी मन के भीतर बस्ता एक अंतर्मन 

जो आत्मा बन जाता है
प्रभू का घर कहलाता है

खुशी और पीड़ा का संगम है ये मन
वहीं संयम और दवा का स्रोत ये अंतर्मन

गर कठिन हो मन को छोड़ना 
तो अंतर्मन को साथ ले चलना

बेलगाम अश्रुओं को बहाता ये मन
उन्हें ठहराव के सूचक देता ये अंतर्मन

जहां लौ जलाता बुझाता ये मन
उसी लौ को स्थिर करता अंतर्मन

©Niti Adhikari
  #मन_की_बात अंतर्मन के साथ

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