मैं एक आम सा लड़का (full in caption) सुनो प्रिय! मैं एक आम सा लड़का हूँ जो निकलता है हर रोज़ पेट की ख़ातिर बसों ट्रेन में धक्के खाता पहुँचता है एक छः बाई छः के क्यूबिकल में और करता है इंतिज़ार हर महीने के आख़र में महज़ चंद रुपयों का जिसे तनख़्वाह कहती है दुनिया