तेज़ाब और बलात्कार दोनों ही ज़ालिम है असर ताउम्र रहता है, इक ज़िस्म कुरेदता है उम्र दराज़ होते होते, इक रूह कुरेदता है उम्र दराज़ होते होते, गुनाहगार गुनाह कर इत्मीनान से गुज़र जाता है, सज़ा काटता है दलीलें देता है रहमो-करम जीता है, कैसा ये समाज है जहां कहां बसर शिकार है, ए ज़िंदगी बयां कर, भरा जख़्म यहां कहां तिरस्कार होते होते| तेज़ाब और बलात्कार दोनों ही ज़ालिम है असर ताउम्र रहता है, इक ज़िस्म कुरेदता है उम्र दराज़ होते होते, इक रूह कुरेदता है उम्र दराज़ होते होते, गुनाहगार गुनाह कर इत्मीनान से गुज़र जाता है, सज़ा काटता है दलीलें देता है रहमो-करम जीता है, कैसा ये समाज है जहां कहां बसर शिकार है,