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heart उनकी सिसकती रूहें देती रही दस्तक बारंबार एक

heart उनकी सिसकती रूहें 
देती रही दस्तक बारंबार
एक-दूसरे की नसों में रक्त बन कर,
जितना मन रोया था उसका कतरा भर भी
वो बहा नहीं पाए थे आंखों से,
कई सौ किलोमीटर की दूरी के बावजूद
हर आहट पर दोनों टटोलते एक-दूसरे को,
धूल उड़ाती,लू भरी गर्म दोपहरियों में भी
खिड़की से झांकते रहते सड़क के छोर की ओर
उन्होंने वादे नहीं किए बस इंतजार किया,
यादों को ओढ़ते-बिछाते
कल्पनाओं में देखकर मुस्कुराते
वो अभ्यस्त हो चले थे
वो जानते थे किस तरह सहेजना है
इन मुश्किलों में एक-दूसरे को,

वो सिर्फ वाकिफ़ नहीं थे,दोनों विश्वास से भरे थे
कि वक्त और हालातों के साथ
प्रेम सूरत भले बदल ले
मगर कभी हृदय नही बदलेगा।

©Supriya Singh
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