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فِر بھی کیوں من چلنے کو بےکرار ہے؟ شاید زخمی ہوکر

فِر بھی کیوں من چلنے کو بےکرار ہے؟
شاید زخمی ہوکر ہی یح دِل مانےگا
اَور فِر محبت کی سچاعی زانےگا

 "राह पुर ख़ार है
फिर भी क्यों मन चलले को बेकरार है 
शायद ज़ख्मी होकर ही यह दिल मानेगा 
और फिर मोहब्बत की सच्चाई जानेगा"

ख़ार - कांटा
पुर - भरा हुआ
فِر بھی کیوں من چلنے کو بےکرار ہے؟
شاید زخمی ہوکر ہی یح دِل مانےگا
اَور فِر محبت کی سچاعی زانےگا

 "राह पुर ख़ार है
फिर भी क्यों मन चलले को बेकरार है 
शायद ज़ख्मी होकर ही यह दिल मानेगा 
और फिर मोहब्बत की सच्चाई जानेगा"

ख़ार - कांटा
पुर - भरा हुआ