बेजुबान आप ढूंढ़ते रहे स्वाद खून में सदा, जीभ आपकी बलि बेज़ुबान हो गये। नाम चाहे जो रख लो शाहरुख़ या सलमान, हिन्दू के घर जाओ या ले जाये मुसलमान। कहीं मनेगा दशहरा होगी कहीं पे बकरीद, तेरी तो नियति में लिखा हो जाना है कुर्बान। बकरे की अम्मा कबतक खैर मनाएगी, आज नही तो कल गोद सूनी हो जाएगी। नहीं रहमत तेरा न कोई तेरा है भगवान, त्यौहारों की हो तुम बलि मन में लो ठान। नहीं दया किसी कोे भले तुम हो नादान, अपने स्वाद को लोग ले लेते तेरी जान। मगर तुम्हें भी तो है जीने का अधिकार, सबकी खुशियों में तुम हो जाते कुर्बान। ऐश करते आतंकी बनके सरकारी मेहमान, मजे उड़ाते भ्रस्टाचारी लूट के सब अरमान। नेता-मंत्री-संतरी-अफ़सर सब मौज उड़ाते क्यों हो बलि जब किया नहीं तूने नुकसान।। नहीं माँगती बलि कभी सब उसकी संतान, माता के नाम पर क्यूँ लेते हो उसकी जान। दो बलि दुष्कर्मी की,भ्रस्टाचारी आतंकी की- पर मत मारो उन्हें जो निर्दोष बेचारे बेज़ुबान। ©पंकज भूषण पाठक प्रियम बेजुबान बलि