कृष्ण-पद कान्हा रे! भवसिंधु से तार। आँधी काल सी गति बनी है करे नित साँसों से तकरार। अग्नि सरीखी कोई उलझन हृदय में चुभती बारम्बार। धरती सा अब धैर्य नहीं है मिट्टी सी काया भव मझधार। बादल बरसे नित वैसे ही फूटती अँखियन से जलधार। चिंता का ये अमिट कुहासा श्वास का करता नित संहार। घावों का इक घन है जीवन प्रेम छतरी जिसका उपचार। जनम मरण जीवन का कर्ता गोविन्द बिना कौन आधार।। चारण गोविन्द #चारण_गोविन्द #कृष्ण_पद #CharanGovindG #govindkesher #bhkti #jaishreekrishna #kanha #Poetry #Trending #Krishna