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तप रही है मरू धरा विहंग को प्यास है, शुष्क हुआ है

तप रही है मरू धरा विहंग को प्यास है,
शुष्क हुआ है हर गला बारिश की आस है। तप रही है मरू धरा विहंग को प्यास है,
शुष्क हुआ है हर गला बारिश की आस है।
तप रही है मरू धरा विहंग को प्यास है,
शुष्क हुआ है हर गला बारिश की आस है। तप रही है मरू धरा विहंग को प्यास है,
शुष्क हुआ है हर गला बारिश की आस है।

तप रही है मरू धरा विहंग को प्यास है, शुष्क हुआ है हर गला बारिश की आस है।