एक बात बताओ मुझको, क्या सुनते हो मेरी धुन। क्या चाहते हो तुम भी मुझे, या हैं अजनबी हम तुम। इक़रार-ए-वफ़ा तो हमने, कई बार किया था तुमसे। तुमने ही न सुना मुझे, तुम जाने कहाँ थी गमसुम। ख़ैर जाने दो ये बातें, और क्या कर सकते हैं अब हम। मिलन को मेरा दिल है प्यासा, और भी प्यासी तुम। अंजान मोहब्बत में अक्सर, हम वक़्त न उतना देते हैं। जितने में मुकम्मल हो जाती, इश्क़ की नई सरगम। एक होने की जब बात थी, तो वक़्त भी न दिया हमने। अब पछताने से क्या फायदा, मतलब का न रहा मौसम। ♥️ Challenge-551 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।