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फिर निशा सी घिर के आई ! एक ज्योति जल रही जो, विघ्

फिर निशा सी घिर के आई !

एक ज्योति जल रही जो,
विघ्नों में भी पल रही जो,
जब उठी ईर्ष्या की आंधी,
एक क्षण भी टिक ना पाई ।
फिर निशा सी घिर के आई ।।

दूरियां संपूर्ण जग में,
पाट ली थी एक पग में,
जो विचारों में मिली वो,
खाई, किन्तु भर ना पाई ।
फिर निशा सी घिर के आई ।।

गेह के बाहर खड़ी जो,
अश्रु से गीली पड़ी जो,
सुबकियां लेती रही पर,
कब किसे दी है दिखाई ?
फिर निशा सी घिर के आई ।। फिर निशा सी घिर के आई !

एक ज्योति जल रही जो,
विघ्नों में भी पल रही जो,
जब उठी ईर्ष्या की आंधी,
एक क्षण भी टिक ना पाई ।
फिर निशा सी घिर के आई ।।
फिर निशा सी घिर के आई !

एक ज्योति जल रही जो,
विघ्नों में भी पल रही जो,
जब उठी ईर्ष्या की आंधी,
एक क्षण भी टिक ना पाई ।
फिर निशा सी घिर के आई ।।

दूरियां संपूर्ण जग में,
पाट ली थी एक पग में,
जो विचारों में मिली वो,
खाई, किन्तु भर ना पाई ।
फिर निशा सी घिर के आई ।।

गेह के बाहर खड़ी जो,
अश्रु से गीली पड़ी जो,
सुबकियां लेती रही पर,
कब किसे दी है दिखाई ?
फिर निशा सी घिर के आई ।। फिर निशा सी घिर के आई !

एक ज्योति जल रही जो,
विघ्नों में भी पल रही जो,
जब उठी ईर्ष्या की आंधी,
एक क्षण भी टिक ना पाई ।
फिर निशा सी घिर के आई ।।

फिर निशा सी घिर के आई ! एक ज्योति जल रही जो, विघ्नों में भी पल रही जो, जब उठी ईर्ष्या की आंधी, एक क्षण भी टिक ना पाई । फिर निशा सी घिर के आई ।। #yqdidi #yqhindi