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जय श्री राम भक्तजनों रामायण की कहानी में पहला अध्य

जय श्री राम भक्तजनों
रामायण की कहानी में पहला अध्याय ।

बात त्रेता युग की है जब अयोध्या के महाराज दशरथ हुआ करते थे जो बहुत ही दयालु और न्याय प्रिय राजा थे जो अपनी प्रजा का बहुत ही ख्याल रखते थे उनकी तीन पत्नियां थी जिनमें कौशल्या, सुमित्रा, और कैकई थी तीनों ही रानियां मातृ सुख से वंचित थी तब राजा दशरथ को चिंता हुई और वह अपने गुरुदेव वशिष्ठ जी से सलाह लेने उनके आश्रम पहुंचे तब गुरुदेव वशिष्ठ जी ने कहां की आपको एक अखंड यज्ञ करना होगा तब जाकर सुयोग पुत्र की प्राप्ति होगी यह सब सुनकर राजा दशरथ जी ने यज्ञ की तैयारी की और फिर यज्ञ हवन संपन्न होने के बाद कुछ ही दिन बीते कि उन्हें चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनमें मां कौशल्या के कोख से भगवान श्रीराम का जन्म हुआ मां सुमित्रा के कोख से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ और मां कैकई के गर्भ से भरत जी का जन्म हुआ और उन सभी का गुरुदेव वशिष्ठ जी ने नामकरण किया और चारों बालकों नाम राम लक्ष्मण भारत शत्रुघ्न पड़ा और फिर चार पुत्र रत्न की प्राप्ति से महाराज दशरथ बहुत ही प्रसन्न हुए और अयोध्या वासी खुशी से नाचने गाने लगे पुरी अयोध्या नई उत्साह और उमंग से ओतप्रोत थी और इधर तीनों माताऐं भी मातृ सुख से निहाल हो गई थी और राजा दशरथ के तो खुशी का कोई ठिकाना ही ना था तीनों रानियां और राजा दशरथ अपने चार पुत्रों को अपने आंगन में खेलते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे फिर इसी तरह से दिन बिता गया और चारों पुत्र बड़े हो गए फिर गुरुदेव वशिष्ठ जी ने उन चारों पुत्रों का शिक्षा दीक्षा का भार संभाला और उन्हें अपने आश्रम ले गए और चारों पुत्रों को योग विद्या और धर्नुविद्या का ज्ञान दिया और फिर सभी ज्ञान अर्जित कर चारों भाई अपने राज महल में लौट आए लेकिन कुछ ही दिन बीते थे की राजा दशरथ जी के महल में महर्षि विश्वामित्र पधारें और उन्होंने अपने यज्ञ हेतु रक्षा के लिए श्री राम और लक्ष्मण जी को साथ ले जाने की बात कही तब महाराज दशरथ जी ने थोड़ा संकुचऐं लेकिन फिर लोकहित के बारे में सोच कर और महर्षि विश्वामित्र की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति दे दी और फिर महर्षि विश्वामित्र श्री राम लक्ष्मण को साथ लेकर अपने आश्रम चल दिए आगे चलते चलते उन्हें एक भयानक राक्षस नी ताड़का दिखी तब महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम जी से उसका संहार करने को कहा और फिर श्री राम जी ने अपने एक ही बाण से उस ताड़का राक्षणी को धारा सा ही कर दिया और फिर वह अपने मार्ग की ओर आगे अग्रसर हुए....

आगे की रामायण की कहानी अध्याय दूसरा में जरूर  पढ़िएगा ।
जय सियाराम

©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम
जय श्री राम भक्तजनों
रामायण की कहानी में पहला अध्याय ।

बात त्रेता युग की है जब अयोध्या के महाराज दशरथ हुआ करते थे जो बहुत ही दयालु और न्याय प्रिय राजा थे जो अपनी प्रजा का बहुत ही ख्याल रखते थे उनकी तीन पत्नियां थी जिनमें कौशल्या, सुमित्रा, और कैकई थी तीनों ही रानियां मातृ सुख से वंचित थी तब राजा दशरथ को चिंता हुई और वह अपने गुरुदेव वशिष्ठ जी से सलाह लेने उनके आश्रम पहुंचे तब गुरुदेव वशिष्ठ जी ने कहां की आपको एक अखंड यज्ञ करना होगा तब जाकर सुयोग पुत्र की प्राप्ति होगी यह सब सुनकर राजा दशरथ जी ने यज्ञ की तैयारी की और फिर यज्ञ हवन संपन्न होने के बाद कुछ ही दिन बीते कि उन्हें चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनमें मां कौशल्या के कोख से भगवान श्रीराम का जन्म हुआ मां सुमित्रा के कोख से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ और मां कैकई के गर्भ से भरत जी का जन्म हुआ और उन सभी का गुरुदेव वशिष्ठ जी ने नामकरण किया और चारों बालकों नाम राम लक्ष्मण भारत शत्रुघ्न पड़ा और फिर चार पुत्र रत्न की प्राप्ति से महाराज दशरथ बहुत ही प्रसन्न हुए और अयोध्या वासी खुशी से नाचने गाने लगे पुरी अयोध्या नई उत्साह और उमंग से ओतप्रोत थी और इधर तीनों माताऐं भी मातृ सुख से निहाल हो गई थी और राजा दशरथ के तो खुशी का कोई ठिकाना ही ना था तीनों रानियां और राजा दशरथ अपने चार पुत्रों को अपने आंगन में खेलते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे फिर इसी तरह से दिन बिता गया और चारों पुत्र बड़े हो गए फिर गुरुदेव वशिष्ठ जी ने उन चारों पुत्रों का शिक्षा दीक्षा का भार संभाला और उन्हें अपने आश्रम ले गए और चारों पुत्रों को योग विद्या और धर्नुविद्या का ज्ञान दिया और फिर सभी ज्ञान अर्जित कर चारों भाई अपने राज महल में लौट आए लेकिन कुछ ही दिन बीते थे की राजा दशरथ जी के महल में महर्षि विश्वामित्र पधारें और उन्होंने अपने यज्ञ हेतु रक्षा के लिए श्री राम और लक्ष्मण जी को साथ ले जाने की बात कही तब महाराज दशरथ जी ने थोड़ा संकुचऐं लेकिन फिर लोकहित के बारे में सोच कर और महर्षि विश्वामित्र की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति दे दी और फिर महर्षि विश्वामित्र श्री राम लक्ष्मण को साथ लेकर अपने आश्रम चल दिए आगे चलते चलते उन्हें एक भयानक राक्षस नी ताड़का दिखी तब महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम जी से उसका संहार करने को कहा और फिर श्री राम जी ने अपने एक ही बाण से उस ताड़का राक्षणी को धारा सा ही कर दिया और फिर वह अपने मार्ग की ओर आगे अग्रसर हुए....

आगे की रामायण की कहानी अध्याय दूसरा में जरूर  पढ़िएगा ।
जय सियाराम

©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम