मैं खुदको कहानियों में बुन कर क्या करूं गा हर जगह मेरा किरदार उलझा हुआ है मैं ख़ुद को किनारे में लाकर क्या करूं गा मेरे पांव सा मेरा गला भी डूबा हुआ है मैं तुम्हें किसी दिन भला क्यों मिलूगा मेरा वक्त किसी के इंतजार में गिरवी पड़ा है मैं तुम्हारी दावा कैसे बनू गा मेरा खुदका जिस्म जख्मों से भरा है मैं तुम्हारी शिकायत तुमसे क्यों करुगा यही तो मेरी गुनाहों की सजा है ©Saurav sayri Prachi Mishra Saurav life