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#काव्योदाय मरहमों के हाथ काले पड़ गए। ज़ख़्म अपनों के

#काव्योदाय
मरहमों के हाथ काले पड़ गए।
ज़ख़्म अपनों के सुनहरे पड़ गए।।
वक़्त की आँधी ने ऐसा क्या कहा
धीरे-धीरे ज़र्द पत्ते पड़ गए।।
       बढ़ गईं हैं यूँ दिलों में दूरियां
      अब जनाज़े भी अकेले पड़ गए।।
 आखिरश पलकें तुम्हारी खुल गईं
मयकदों में फिर से ताले पड़ गए।।
       तल्ख़ लफ़्ज़ों में तेरे वो आग है
       देख मेरे दिल में छाले पड़ गए।।
जिसमें थी चूल्हे की मिट्टी सी महक
वो सभी किस्से पुराने पड़ गए।।
        वो हवा खुदगर्ज़ियों की बह रही
        सारे ही रिश्ते पुराने पड़ गए।।
क्या कहें कि देख कर "संदल" उन्हें
कांपते होठों पे ताले पड़ गए।।
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©Satyapal Singh
  #sad_feeling