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चार पैसे कमाने मे पसीने निकल जाते है साहब हम मजदूर

चार पैसे कमाने मे पसीने
निकल जाते है साहब
हम मजदूर है जवानी चार
रोटियों मे निगल जाते है साहब
दिन का तो पता नही
रात भी आती है अहसास नहीं कराती
चार दिन की जवानी जीने की
चाह मे ढलते ढलते कैसे उम्र ढल गई साहब

चार पैसे कमाने मे पसीने निकल जाते है साहब हम मजदूर है जवानी चार रोटियों मे निगल जाते है साहब दिन का तो पता नही रात भी आती है अहसास नहीं कराती चार दिन की जवानी जीने की चाह मे ढलते ढलते कैसे उम्र ढल गई साहब #कविता #UnlockSecrets

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