कई अरसों तलक मेरे इश्क की, खासियत यही थी, उफ़ानो पर मेरे चर्चे, और उसकी शख्शियत रही थी।। वो खुद जुदा हुई, या खुदा की ये अदा थी, या मेरी मनकूहा होना, उसकी हैसियत नहीं थी।। रंगरेज़ थी, ख्वाब क़ौस-ए-क़ु़ज़ह से, खूब दिखाती थी, मेरी आशिकी के चूल्हे पर, कबाब अपने दिलबर के पकाती थी। मेरी दिवानगी की लौ पर, यार उसका सेकता था बदन अपना, मैं हमारा घर सजाता था, वो उसके बिस्तर सजाती थी।। कई बरसों तलक, ख़बरों की, अज़ब नियत यही थी, ना पता था मुझे मेरा, उसकी भी कैफियत नहीं थी। कोई डाकिया, कबूतर, या कोई सफ़ीर, मेरा ये पैग़ाम उस को दे आए, कि मेरी हमनवा होना, उसकी हैसियत नहीं थी।। हमारे इश्क का उस बेवफा ने, था एक इक़रार करवाया, मैं उसका रहूंगा, ये वायदा, उसमें बार बार लिखवाया। अंधेपन में हर पन्ने पर करता गया था मैं दस्तखत, वो सबकी रहेगी, ये दफ़ा, मैं कहीं ना एक बार पढ़ पाया।। कई अरसों तलक वो बस मेरी, इबादत रही थी, उसकी संवारना जुल्फें, मेरी काबिलियत यही थी। सिसक पड़ता हूॅं मैं सोच सोच कर, उसके गेसुओं में कुछ और उंगलियां, कि मेरी जहाॅंपनाह होना, उसकी हैसियत नहीं थी।। ©Rahul Kaushik #shaayavita #MeraIshq #Dhokha #dhokhahaiyeishq #haisiyat #Woh #simplicity