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अपने पहलू से कब निकल गया पता ही नहीं, ज्वार भाटा स

अपने पहलू से कब निकल गया पता ही नहीं,
ज्वार भाटा सा आके ढल गया पता ही नहीं।
वक्त था रेत के मानिंद, जो संभाला न गया,
अपने हाथों से कब फिसल गया पता ही नहीं।।

©Mukesh Meet
  #वक्त#निकल#गया