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कैसे समझाऊं, मैं जिस उडान को चाहता था, खामोश होकर,

कैसे समझाऊं,
मैं जिस उडान को चाहता था,
खामोश होकर,
तुमने लफ्जों के जंजीर में जकड़ लिया।

मैं तो भूलना चाहता था सारी बातों को,
तुमने फिर से नई बातों में पकड़ लिया।

जो ज़ख्म भर चुके थे,
गुजरे लम्हो के साये में।
सवालों के घेरे से,
तुमने फिर ज़ख्मो को कुरेदने की कोशिश की,
जो निशान धूल गए वख्त के रेत पर,
उनके जमीं को कुरेदने की साजिश की,
कैसे समझाऊं,
मैं जिस उडान को चाहता था,
खामोश होकर,
तुमने लफ्जों के जंजीर में जकड़ लिया।

©Prashant Roy
  #Moon# उड़ान दिल से। nida Rakesh Srivastava Chandan Chandu IshQपरस्त Prem Lata Solanki