जंगल में अमंगल एक घना सा जंगल था वहां घटा अमंगल था सच की तलाश में थे हम बड़ा भयानक मंजर था चमगादड़ थे चीख रहे और नाग थे रेंग रहे सिट्टी पिट्टी गुम हमारी बचने की थी सोच रहे तब गूंजी हँसी भयंकर बदल गया था पूरा मंजर आत्माओं का डेरा था चारों ओर से घेरा था हवाएं जोर मार रही पेड़ो को उखाड़ रही अटकी साँस हमारी ऐसे जैसे बचेगी जान नहीं (शेष अनुशीर्षक में) एक घना सा जंगल था वहां घटा अमंगल था सच की तलाश में थे हम बड़ा भयानक मंजर था चमगादड़ थे चीख रहे और नाग थे रेंग रहे सिट्टी पिट्टी गुम हमारी