था एक पुराना दर्द जो पुराना ख्वाब का। थी कुछ झूठी उम्मीदें झूठे एहसास का। ज़ख्म गहरे है जिसकी ना कोई है दवा, किनारों पर बैठ अकेली सुनती हूँ मन का! भाती नहीं ये भीड़ मुझे, तन्हाइयों नें घेरा है। भीतर से हूँ अकेली बाहर लगा एक मेला है। क़िस्मत से नाराज़ और ख़ुद से टूटा है वास्ता, जीवन के रंगबिरंगे खेल से मेरा दिल थका है! ♥️ Challenge-804 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।