नशे में हूँ, सुरूर नहीं है "अना" में मेरे गुरुर नहीं है तुम बात करो ज़िस्म और रूह की मिट्टी "आला" के दिल से दूर नहीं है नदियां भी है उफ़ान पर आज इतना जान लो के पुर नहीं है चल पड़ा है कारवां-ए-नज़्म का दिल्ली भी कदमों से दूर नहीं है बिठा रक्खा है आका को कंधो पे कौन कहता है वो मज़दूर नहीं है बेचारी झेल रही है बेचारगी तीन तलाक़ उसे भी मंज़ूर नहीं है कोई ठिकाना कभी हासिल न हुआ "आला" के लफ़्ज़ों में जी हुज़ूर नहीं है #अना#गुरुर#नज़्म#तीन_तलाक़#रूह