कविता- “स्वर्णिम विजय वर्ष” मैं स्वर्णिम 'विजय वर्ष' तुमको, अपनी आखों से दिखलाऊंगा। धीरे धीरे 'जग-जीत'ने की गाथा, इस कविता से बतलाऊंगा।। इकहत्तर की जंग में, भारत की सेना ने ऊँचा नाम किया। रण में 'दुर्गा', 'सैम बहादुर' की, नीति का जग ने सम्मान किया।। सरहद, धरती, अम्बर, सागर, चहुं ओर परचम लहराया था। दो हिस्सों में टूटा पाक, फ़िर घुटनों पर रोते आया था। 'निर्मल', 'इक्का', 'होशियार' ने, 'अरुण' सा लोहा मनवाया था। सीने में दुश्मन के 'तलवार', 'त्रिशूल', और 'ट्राइडेंट' घोप दिखलाया था। 'कुल दीप' के नेक इरादे, ना पाक मनसूबों पर भारी थे। भारत के 'विक्रांत' सैनिक, ख़ुद में ही चिंगारी थे।। मिट्टी में जीता, 'लोंगेवाला' और 'बसंतर', असमान में 'कैक्टस लिली' खिलाया है। ना ये अंतिम बार हुआ था, ना ये पहली बार हुआ है, भारत ने दुश्मन को, नाकों चने चबवाया है।। वैसे तो सत्य, अहिंसा, सत्यशील के, सरगम के अनुयाई है। पर भारत से न भिड़ने में ही, दुश्मन की भलाई है।। ©Shivank Shyamal कविता- “स्वर्णिम विजय वर्ष” मैं स्वर्णिम 'विजय वर्ष' तुमको, अपनी आखों से दिखलाऊंगा। धीरे धीरे 'जग-जीत'ने की गाथा, इस कविता से बतलाऊंगा।। इकहत्तर की जंग में,