મારું ગામડું ना पानी की फिक्र ना खाने में स्वाद आ रहा है, मुझे मेरा घर वो गाँव याद आ रहा हैं। वो कुवेँ का पानी वो नदियो की कल-कल, मुझे याद आते वो बचपन के किस्से। वो ग्वालों की मस्ती वो खेत-खलियान, मुझे याद आता वो कबेलु का मकान। वो नीम की छांव वो बरगद की टहनी, मुझे याद आती वो पनघट की गोपी। वो झूला वो बस्ती वो गाँव की मस्ती, कहां ले आई ये शोहरत ये हस्ती। मै फिर रहा हूँ दर-बदर देख रहा संसार है। हास परिहास कर रहा खुद पर, क्या मै पाने आया था। जींदगी तो वहीं थी, मै क्या लेने आया था। #mýđāīřý #village #aaj_ke_halat #आज #गाँव #मजदूर #मजबूर #घर #घर_लौटता_इन्सान