बारिश भी हो रही है, इक लौ भी जल रहा है, मेरे यार के शहर का मौसम बदल रहा है! ये धुप क्यूँ परोसा, मुझे रात में बुलाकर, ओले भी पड़ रहे हैं, बदन भी जल रहा है! बदल रहे तरीके, लहजा बदल रहा है, मैं शक नहीं करूंगा, पर कुछ तो चल रहा है! जो कर चुकी हो वो अब इन्कार क्यूँ करने में, हजार खुशियों में ये गम भी पल रहा है! वो भी समझ गई मै, नहीं हुं उसके काबिल, वो भी बदल रही है, दिल भी सम्भल रहा है! प्रतिहार प्रतिहार